महाजनपद काल का इतिहास | Mahajanpad kal history in hindi | mahajanpadas | mahajanapad kal | mahajan

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महाजनपद काल का इतिहास | Mahajanpad kal history in hindi | mahajanpadas | mahajanapad kal | mahajan

महाजनपद, प्राचीन भारत में राज्य या प्रशासनिक इकाईयों को कहते थे। उत्तर वैदिक काल में कुछ जनपदों का उल्लेख मिलता है। बौद्ध ग्रंथों में इनका कई बार उल्लेख हुआ है।

ईसापूर्व 6वीं-5वीं शताब्दी को प्रारम्भिक भारतीय इतिहास में एक प्रमुख मोड़ के रूप में माना जाता है जहाँ सिन्धु घाटी सभ्यता के पतन के बाद भारत के पहले बड़े शहरों के उदय के साथ-साथ श्रमण आन्दोलनों (बौद्ध पन्थ और जैन पन्थ सहित) का उदय हुआ।

ये सभी महाजनपद आज के उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान से बिहार तक और हिन्दुकुश से गोदावरी नदी तक में फैला हुआ था। दीर्घ निकाय के महागोविन्द सुत्त में भारत की आकृति का वर्णन करते हुए उसे उत्तर में आयताकार तथा दक्षिण में त्रिभुजाकार यानि एक बैलगाड़ी की तरह बताया गया है। बौद्ध निकायों में भारत को पाँच भागों में वर्णित किया गया है - उत्तरापथ (पश्चिमोत्तर भाग), मध्यदेश, प्राची (पूर्वी भाग) दक्षिणापथ तथा अपरान्त (पश्चिमी भाग) का उल्लेख मिलता है। इससे इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि भारत की भौगोलिक एकता ईसापूर्व छठी सदी से ही परिकल्पित है। इसके अतिरिक्त जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्र कृतांग, पाणिनि की अष्टाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र (ईसापूर्व सातवीं सदी में रचित) और महाभारत में उपलब्ध जनपद सूची पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि उत्तर में हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा पश्चिम में गांधार प्रदेश से लेकर पूर्व में असम तक का प्रदेश इन जनपदों से आच्छादित था। कौटिल्य ने एक चक्रवर्ती सम्राट के अन्तर्गत सम्पूर्ण भारतवर्ष की राजनीतिक एकता के माध्यम से एक वृहत्तर संगठित भारत की परिकल्पना की थी। ईसापूर्व छठी सदी से ईसापूर्व दूसरी सदी तक प्रचलन में रहे आहत सिक्कों के वितरण से अनुमान होता है कि ईसापूर्व चौथी सदी तक सम्पूर्ण भारत में एक ही मुद्रा प्रचलित थी। इससे उस युग में भारत के एकता की साफ झलक दिखती है।

ईसा पूर्व छठी सदी में वैयाकरण पाणिनि ने 22 महाजनपदों का उल्लेख किया है। इनमें से तीन - मगध, कोसल तथा वत्स को महत्वपूर्ण बताया गया है।

आरम्भिक बौद्ध तथा जैन ग्रंथों में इनके बारे में अधिक जानकारी मिलती है। यद्यपि कुल सोलह महाजनपदों का नाम मिलता है पर ये नामाकरण अलग-अलग ग्रंथों में भिन्न-भिन्न हैं। इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि ये अन्तर भिन्न-भिन्न समय पर राजनीतिक परिस्थितियों के बदलने के कारण हुआ है। इसके अतिरिक्त इन सूचियों के निर्माताओं की जानकारी भी उनके भौगोलिक स्थिति से अलग हो सकती है। बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय, महावस्तु में १६ महाजनपदों का उल्लेख है

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