अष्टावक्र गीता सार | बंधन और मोक्ष | Ashtavakra geeta

Описание к видео अष्टावक्र गीता सार | बंधन और मोक्ष | Ashtavakra geeta

अष्टावक्र गीता सार | बंधन और मुक्ति | Ashtavakra geeta

इस ग्रंथ का प्रारम्भ राजा जनक द्वारा किये गए तीन प्रश्नों से होता है। (१) ज्ञान कैसे प्राप्त होता है? (२) मुक्ति कैसे होगी? और (३) वैराग्य कैसे प्राप्त होगा? ये तीन शाश्वत प्रश्न हैं जो हर काल में आत्मानुसंधानियों द्वारा पूछे जाते रहे हैं। ऋषि अष्टावक्र ने इन्हीं तीन प्रश्नों का संधान राजा जनक के साथ संवाद के रूप में किया है जो अष्टावक्र गीता के रूप में प्रचलित है। ये सूत्र आत्मज्ञान के सबसे सीधे और सरल वक्तव्य हैं। इनमें एक ही पथ प्रदर्शित किया गया है जो है ज्ञान का मार्ग। ये सूत्र ज्ञानोपलब्धि के, ज्ञानी के अनुभव के सूत्र हैं। स्वयं को केवल जानना है—ज्ञानदर्शी होना, बस। कोई आडम्बर नहीं, आयोजन नहीं, यातना नहीं, यत्न नहीं, बस हो जाना वही जो हो। इसलिए इन सूत्रों की केवल एक ही व्याख्या हो सकती है, मत मतान्तर का कोई झमेला नहीं है; पाण्डित्य और पोंगापंथी की कोई गुंजाइश नहीं है।
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