देवप्रयाग संगम उत्तराखंड | Devprayag Sangam Uttrakhand | Alaknanda aur Bhagirathi Ka Sangam

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देवप्रयाग संगम उत्तराखंड | Devprayag Sangam Uttrakhand | Alaknanda aur Bhagirathi Ka Sangam

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देवप्रयाग Devprayag भारत के उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी गढ़वाल ज़िले में स्थित एक नगर है यह पंच प्रयाग में से एक है और यहाँ अलकनन्दा नदी का भागीरथी नदी से संगम होता है इस संगम के आगे यह संयुक्त नदी गंगा कहलाती है धार्मिक दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थान है

मान्यतानुसार यहां देवशर्मा नामक एक तपस्वी ने कड़ी तपस्या की थी जिनके नाम पर इस स्थान का नाम देवप्रयाग पड़ा प्रयाग किसी भी संगम को कहा जाता है यह स्व.आचार्य श्री पं.चक्रधर जोशी नामक ज्योतिष्विद एवं खगोलशास्त्री का गृहस्थान था जिन्होंने १९४६ में नकषत्र वेधशाला की स्थापना की थी ये वेधशाला दशरथांचल नामक एक निकटस्थ पर्वत पर स्थित है यह वेधशाला दो बड़ी दूरबीनों टेलीस्कोप से सुसज्जित है और यहां खगोलशास्त्र संबंधी पुस्तकों का बड़ा भंडार है इसके अलावा यहां देश के विभिन्न भागों से १६७७ ई से अब तक की संग्रह की हुई ३००० विभिन्न संबंधित पांडुलिपियां सहेजी हुई हैं आधुनिक उपकरणों के अलावा यहां अनेक प्राचीन उपकरण जैसे सूर्य घटी जल घटी एवं ध्रुव घटी जैसे अनेक यंत्र व उपकरण हैं जो इस क्षेत्र में प्राचीन भारतीय प्रगति व ज्ञान की द्योतक हैं
रामायण में लंका विजय उपरांत भगवान राम के वापस लौटने पर जब एक धोबी ने माता सीता की पवित्रता पर संदेह किया तो उन्होंने सीताजी का त्याग करने का मन बनाया और लक्ष्मण जी को सीताजी को वन में छोड़ आने को कहा तब लक्ष्मण जी सीता जी को उत्तराखण्ड देवभूमि के ऋर्षिकेश से आगे तपोवन में छोड़कर चले गये जिस स्थान पर लक्ष्मण जी ने सीता को विदा किया था वह स्थान देव प्रयाग के निकट ही ४ किलोमीटर आगे पुराने बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है तब से इस गांव का नाम सीता विदा पड़ गया और निकट ही सीताजी ने अपने आवास हेतु कुटिया बनायी थी जिसे अब सीता कुटी या सीता सैंण भी कहा जाता है यहां के लोग कालान्तर में इस स्थान को छोड़कर यहां से काफी ऊपर जाकर बस गये और यहां के बावुलकर लोग सीता जी की मूर्ति को अपने गांव मुछियाली ले गये वहां पर सीता जी का मंदिर बनाकर आज भी पूजा पाठ होता है बास में सीता जी यहाम से बाल्मीकि ऋर्षि के आश्रम आधुनिक कोट महादेव चली गईं त्रेता युग में रावण भ्राताओं का वध करने के पश्चात कुछ वर्ष अयोध्या में राज्य करके राम ब्रह्म हत्या के दोष निवारणार्थ सीता जी लक्ष्मण जी सहित देवप्रयाग में अलकनन्दा भागीरथी के संगम पर तपस्या करने आये थे इसका उल्लेख केदारखण्ड में आता है उसके अनुसार जहां गंगा जी का अलकनन्दा से संगम हुआ है और सीता लक्ष्मण सहित श्री रामचन्द्र जी निवास करते हैं देवप्रयाग के उस तीर्थ के समान न तो कोई तीर्थ हुआ और न होगा इसमें दशरथात्मज रामचन्द्र जी का लक्ष्मण सहित देवप्रयाग आने का उल्लेख भी मिलता है तथा रामचन्द्र जी के देवप्रयाग आने और विश्वेश्वर लिंग की स्थापना करने का उल्लेख है

देवप्रयाग से आगे श्रीनगर में रामचन्द्र जी द्वारा प्रतिदिन सहस्त्र कमल पुष्पों से कमलेश्वर महादेव जी की पूजा करने का वर्णन आता है रामायण में सीता जी के दूसरे वनवास के समय में रामचन्द्र जी के आदेशानुसार लक्ष्मण द्वारा सीता जी को ऋषियों के तपोवन में छोड़ आने का वर्णन मिलता है गढ़वाल में आज भी दो स्थानों का नाम तपोवन है एक जोशीमठ से सात मील उत्तर में नीति मार्ग पर तथा दूसरा ऋषिकेश के निकट तपोवन है केदारखण्ड में रामचन्द्र जी का सीता और लक्ष्मण जी सहित देवप्रयाग पधारने का वर्णन मिलता है

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